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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर संघ का रुख: : हैंड' की पृष्ठभूमि में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रभाव,भाजपा को जल्दी ही नया अध्यक्ष मिलेगा ?

जगदीश राठौर

इंदौर :-भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर संघ का रुख: 'फ्री हैंड' की पृष्ठभूमि में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रभाव,भाजपा को जल्दी ही नया अध्यक्ष मिलेगा ?प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को फ्री हैंड मिलने के संकेत !

# संघ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी के अगले अध्यक्ष के चयन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ (फ्री हैंड) दे दी है। यह निर्णय संघ के आंतरिक सूत्रों के अनुसार उस व्यापक रणनीतिक सोच का हिस्सा है जो मार्च में सम्पन्न हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सामने आई।गौरतलब है कि हर वर्ष मार्च के महीने में आयोजित होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा संघ का सर्वोच्च निर्णयकारी मंच है, जिसमें देशभर के संघ-प्रचारक, अनुषांगिक संगठनों के प्रतिनिधि और संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी एकत्रित होकर आगामी वर्ष की दिशा तय करते हैं। इस वर्ष की बैठक विशेष रूप से संघ के शताब्दी वर्ष

(2025- 26) की तैयारी के मद्देनजर आयोजित की गई थी। इस बैठक में जो पांच प्रमुख लक्ष्य संघ द्वारा निर्धारित किए गए थे, वे हैं:1. सामाजिक समरसता का विस्तार

2. स्वदेशी जीवनशैली और अर्थव्यवस्था का समर्थन

3. राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा

4. प्रौद्योगिकी व नवाचार में स्वावलंबन

5. संगठनात्मक विस्तार में समावेशिता – विशेषतः महिलाओं, ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदायों की भागीदारी।

अध्यक्ष पद चयन में संघ की रणनीतिक 'मौन स्वीकृति'**

इन्हीं पांच लक्ष्यों की दिशा में भाजपा संगठन को गतिशील करने हेतु संघ ने अब अध्यक्ष पद को लेकर हस्तक्षेप न करते हुए एक रणनीतिक ‘मौन स्वीकृति’ दी है। इसका अर्थ यह है कि भले ही संघ औपचारिक रूप से अध्यक्ष के नाम की घोषणा या अनुशंसा नहीं कर रहा, परंतु मोदी-शाह नेतृत्व को यह स्पष्ट कर दिया गया है कि चयन की ज़िम्मेदारी उन्हीं की है, बशर्ते संघ के दीर्घकालिक उद्देश्यों को वे ध्यान में रखें।* सामाजिक प्रतिनिधित्व पर विशेष ज़ोर**

सूत्रों के अनुसार, संघ ने इस बार विशेष रूप से यह संकेत दिया है कि भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में ओबीसी, दलित और महिला वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। यह दृष्टिकोण संघ के समावेशी विस्तार के उस चिंतन से जुड़ा है जो पिछले कुछ वर्षों से प्रकट हो रहा है — जैसे कि संघ के प्रचारकों में महिलाओं से संवाद, दलित बस्तियों में स्वयंसेवकों की सक्रियता, और पिछड़े वर्गों से आने वाले नेताओं को आगे बढ़ाने की नीति।

प्रधानमंत्री मोदी और शाह की रणनीतिक सहूलियत

2024 चुनावों के बाद की पुनर्संरचना की आवश्यकता

संघ के वैचारिक और सामाजिक लक्ष्य 2029 तक के दीर्घकालिक नेतृत्वका संकेत

संघ की 'सक्रिय निष्क्रियता' और भाजपा की रणनीतिक स्वायत्तता**

इस घटनाक्रम को संघ की परोक्ष सक्रियता यानी कहा जा सकता है। एक ओर संघ प्रत्यक्ष नाम या हस्तक्षेप से दूर है, वहीं दूसरी ओर वह यह स्पष्ट कर रहा है कि भविष्य की भाजपा संघ की शताब्दी दृष्टि के अनुरूप होनी चाहिए। ऐसे में अध्यक्ष पद की नियुक्ति केवल एक संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि 2029 तक की वैचारिक दिशा का संकेतक भी होगी।

2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। ऐसे में भाजपा का नेतृत्व न केवल राजनीतिक जीत का वाहक, बल्कि वैचारिक अनुशासन का संरक्षक भी होना चाहिए — यही संकेत इस ‘फ्री हैंड’ के पीछे छिपा हुआ है।

भाजपा अध्यक्ष पद पर निर्णय: संभावित नाम और समीकरणों में नए चेहरे**

राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के अगले अध्यक्ष पद के लिए 'फ्री हैंड' देने के बाद, संभावित नामों और समीकरणों पर चर्चा तेज हो गई है। इस पद के लिए अब कुछ नए चेहरों के साथ-साथ पुराने दिग्गजों के नाम भी सामने आ रहे हैं।प्रमुख संभावित नाम:

* भूपेंद्र यादव:** संगठन और कानूनी मामलों में अपनी दक्षता के लिए जाने जाते हैं। संघ की पृष्ठभूमि से निकले एक वरिष्ठ नेता हैं, जो संगठन के भीतर मजबूत पकड़ रखते हैं।* सुनील बंसल:** उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन को मजबूत करने वाले प्रमुख रणनीतिकार के तौर पर इनकी पहचान है। संघ से इनका मजबूत जुड़ाव है, जो इन्हें एक अहम दावेदार बनाता है।* अनुराग ठाकुर:** युवा चेहरा, मीडिया फ्रेंडली होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं, जिससे क्षेत्रीय संतुलन साधने में मदद मिल सकती है।

* के.अन्नामलाई: **तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, अपनी आक्रामक शैली और युवा नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। दक्षिण भारत में पार्टी के विस्तार के लिए एक महत्वपूर्ण चेहरा हो सकते हैं।

* वनती श्रीनिवासन** तमिलनाडु से महिला नेता, जो अपनी सक्रियता और जमीनी जुड़ाव के लिए पहचानी जाती हैं। महिला प्रतिनिधित्व के दृष्टिकोण से इनका नाम महत्वपूर्ण है युवा और महिला मोर्चे में काम कर चुकी हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल से कोई ओबीसी या दलित चेहरा** संघ की समावेशी सामाजिक प्रतिनिधित्व की इच्छा को देखते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल से किसी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या दलित चेहरे को भी अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। यह कदम पार्टी के सामाजिक आधार को और मजबूत करेगा।

संघ की अपेक्षाए और समीकरण*:

संघ चाहता है कि नया अध्यक्ष 2029 तक की राजनीतिक तैयारी, 2025 के शताब्दी वर्ष की वैचारिक योजना, और समावेशी सामाजिक प्रतिनिधित्व — इन तीनों महत्वपूर्ण पहलुओं को सफलतापूर्वक साध सके।इसका अर्थ यह है कि अध्यक्ष को न केवल आगामी लोकसभा चुनावों और अन्य महत्वपूर्ण चुनावों के लिए पार्टी को तैयार करना होगा, बल्कि संघ के शताब्दी वर्ष (2025-26) से जुड़ी वैचारिक योजनाओं और कार्यक्रमों को भी आगे बढ़ाना होगा। इसके साथ ही, महिला, ओबीसी और दलित वर्गों को संगठन में प्राथमिकता देने की संघ की इच्छा को पूरा करना भी नए अध्यक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।अंतिम निर्णय भले ही प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के हाथ में हो, पर यह तय है कि उसकी वैचारिक छाया आरएसएस की प्रतिनिधि सभा से ही आएगी। यानी, अध्यक्ष का चुनाव पार्टी की रणनीतिक ज़रूरतों के साथ-साथ संघ की दीर्घकालिक दृष्टि और सामाजिक समावेश के लक्ष्यों को भी ध्यान में रखकर किया जाएगा।

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