भगवानपुर की गली में वर्दी ने लिखी इंसानियत की नयी दास्तां” : जब चौकी इंचार्ज बनीं सपनों की पहरेदार –
जब चौकी इंचार्ज बनीं सपनों की पहरेदार – भगवानपुर की गली में वर्दी ने लिखी इंसानियत की नयी दास्तां”
कौशाम्बी। पुलिस की वर्दी अक्सर डर और सख़्ती का प्रतीक मानी जाती है, लेकिन भगवानपुर चौकी इंचार्ज पूनम कबीर ने शनिवार की रात उस परिभाषा को बदलकर रख दिया। गश्त पर निकलीं तो सोचा होगा अपराधियों पर नज़र रखनी है, मगर उनकी नज़र उस कोने में ठहर गई, जहां दो मासूम बच्चे गरीब हालातों में टिमटिमाती रोशनी के सहारे किताबों से जूझ रहे थे। यह दृश्य साधारण नहीं था, यह गरीबी और सपनों की लड़ाई का सबसे मार्मिक चित्र था। पिता कमलाकर गुप्ता ठेले पर लाई-चना बेचते हैं, मां सुनीता देवी गृहणी होते हुए भी पति का हाथ बंटाती हैं। मगर इन हालातों में भी शिवा (कक्षा 7) और नीरज (कक्षा 4) अपने छोटे-से दायरे में बड़े सपनों को जी रहे थे।
चौकी इंचार्ज पूनम कबीर का दिल पिघल गया। उन्होंने बच्चों से पढ़ाई के बारे में बातें कीं, उनके हौसले को सराहा और तुरंत पढ़ाई की पूरी किट भेंट कर दी। इतना ही नहीं, बच्चों को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा— “सपनों की उड़ान हालात नहीं रोक सकते, बस हिम्मत चाहिए।”
गांव वाले उस पल सन्न रह गए। उन्होंने पुलिस को अब तक अपराध रोकने वाली ताकत के रूप में देखा था, लेकिन पहली बार वर्दी के पीछे ममता और इंसानियत का चेहरा देखा। पूनम कबीर की यह पहल बच्चों के लिए तो सहारा बनी ही, साथ ही पूरे समाज को यह संदेश दे गई कि— “पुलिस की असली पहचान केवल हथकड़ी और सायरन नहीं, बल्कि कमजोरों की ढाल और सपनों की रक्षक भी है।” आज भगवानपुर के लोग गर्व से कहते हैं कि उनके गांव में चौकी इंचार्ज नहीं, बल्कि बच्चों के सपनों की पहरेदार तैनात हैं।
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